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लेखनी प्रतियोगिता -05-Nov-2022 पैसा बोलता है



शीर्षक = पैसा बोलता है




आज अचानक  बाजार में सब्जी की दुकान से सब्जी खरीदते समय जब मेरी मुठ भेड़ मेरे साथ स्कूल में पढ़ने वाले मेरे एक मित्र से हुयी, इतने सालो बाद जिंदगी की भाग दौड़ में इतना आगे निकल जाने के बाद ज़ब अतीत से निकल कर कोई चेहरा सामने आकर खड़ा हो जाता है 


तब उसे देख कर जो आभाव मन में जाग्रत होते है, उन्हें शायद लफ्ज़ो में बता पाना थोड़ा मुश्किल होगा


ऐसे ही आज ज़ब उस सब्जी की दुकान से निकलते समय मेरी मुलाक़ात मेरे बचपन के दोस्त अमन से हुयी, उसे अपनी आँखों के सामने देख मुझे बहुत ख़ुशी हुयी



मैं तो उसकी आवाज़ से ही पहचान गया था , पहचानता कैसे नहीं बचपन में रोज़ दरवाज़े पर आकर मुझे आवाज़ देता था , "अशोक जल्दी आजा स्कूल के लिए देर हो रही है "


उसकी आवाज़ कान में पड़ते ही, मैं तेज़ी से दरवाज़े की तरफ भाग जाता और साथ साथ स्कूल जाते


हम दोनों स्कूल तो साथ जाते थे , हर पल साथ में रहते थे , अमन थोड़ा पढ़ाई में कमज़ोर था, जिस वजह से वो स्कूल में अध्यापक से और घर पर अपने माता पिता से मार खाता था



फिर बारहवीं के बाद मुझे घर की परेशानियों और ज़िम्मेदारियों  ने आन घेरा और मेरा अमन से रिश्ता टूट गया , अमन भी बारहवीं के बाद कही चला गया था 



आज 20 साल बाद उसे देखा तो दंग रह गया था, मेरा दोस्त बीस साल बाद मुझे मिला था । सोचा था उसके साथ बैठ कर पुरानी यादें ताज़ा करेंगे 


भले ही जिंदगी ने हमें अपने अपने मकामों पर पंहुचा दिया था , जहाँ मैं अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाते निभाते  अपनी जिंदगी में बस इतना ही सफल हो पाया था  की थोड़ा बहुत पैसा जोड़ कर एक छोटी सी किराने की दुकान और समान ले जाने के लिए एक बाइक खरीद ली थी , उसी से अपना और घर का गुज़ारा हो रहा था


मुझे ईश्वर से कोई शिकायत नहीं, उसने जो दिया बहुत दिया बहुत से लोगो के पास तो इतना भी नहीं



मुझे अपने दोस्त अमन को देख कर काफ़ी ख़ुशी हुयी, बड़ी सी गाड़ी से ज़ब वो निकला, उसे जिंदगी में सफल देख मुझे बेहद ख़ुशी हुयी


उससे ज्यादा ख़ुशी तब होती अगर वो मुझसे वही पहले वाला अमन बन कर मिलता, जो मेरे दरवाज़े पर आकर मुझे आवाज़ देता, मेरे स्कूल ना जाने पर स्वयं भी स्कूल नहीं जाता



लेकिन उस सर सरी सी मुलाक़ात ने मुझे बता दिया की मेरा दोस्त अब बदल गया है , वो कह तो नहीं सका लेकिन मैं समझ गया था की वो मुझे इस पुरानी बाइक पर देख कर हस रहा था ।


उसका मुझे अपनी गाड़ी में बैठाना, अपना मोबाइल, लैपटॉप, और विदेश में खीची तस्वीरो को दिखा कर अपनी सफलता को मुझ पर ज़ाहिर करना साफ नज़र आ रहा था 


उसकी बातो में दोस्ती की महक नहीं आ रही थी , उसकी बातो से लग रहा था  की आज मेरा दोस्त नहीं बल्कि उसका पैसा और रुतबा बोल रहा है, जो मुझे बार बार छोटा दिखाने की कोशिश कर रहा था 



मेने तो सोचा था, इस व्यस्त भरी जिंदगी में बैठ कर कही गली नुक्कड़ की चाय पिएंगे और पुरानी यादो को ताज़ा करेंगे  लेकिन वो तो मुझे ऐसी जगह ले गया चाय पिलाने जहाँ उस चाय का एक एक घूँट मेरे गले से ज़हर की भांति उतर रहा था, और उस पर उसकी वो बाते जो मेरा दिल उलझा रही थी , उन बातो ने मुझे वहाँ से उठने पर मजबूर कर दिया और मैं सीधा अपनी बाइक पर बैठ कर अपने घर आ गया


जो कहने को बड़ा तो नहीं है, लेकिन मुझे हर पल अपनी औकात याद दिलाता रहता है और बताता रहता है  की किस तरह लफ्ज़ और आपके बोलने का तरीका  आपको आपके अपनों से या तो करीब कर देता है या फिर दूर ।


आज मेरा दोस्त मुझसे बहुत दूर हो गया , उसकी ज़ुबान से निकले वो लफ्ज़ जो उसके नहीं बल्कि पैसे के अहंकार में उसके मुँह से निकल रहे थे , उन्होंने मेरा सीना इतना छलनी कर दिया है  की शायद अब मैं कभी अपने दोस्त की शक्ल भी देखना पसंद नहीं करूंगा ।



Pratiy


ईश्वर से दुआ है , की वो अपनी उस ज़ुबान से जिस पर पैसा बोल रहा है  किसी और का दिल ना दुखाये  और समय रहते उसे ईश्वर सद्बुद्धि दे।



प्रतियोगिता हेतु लिखी कहानी  


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5 Comments

Shandar rachana

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Abhinav ji

06-Nov-2022 09:15 AM

Very nice

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Gunjan Kamal

06-Nov-2022 08:06 AM

शानदार प्रस्तुति 👌🙏🏻

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